
जो मजा बनारस में, वो न पेरिस में न फारस में…
“शहर नहीं, ज़िन्दगी है बनारस
एक बनारसी बनारस , दो बनारसी मौज ।
तीन बनारसी कम्पनी, चार बनारसी फौज ।।”
शुभम सोनकर,दिल्ली।
अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन बनारस के बारे में कहते हैं-
“बनारस इतिहास से भी अधिक प्राचीन है. परम्परा की दृष्टि से भी अतिशय प्राचीन है. मिथकों से भी कही अधिक प्राचीन है. और यदि तीनों (इतिहास, परम्परा और मिथक) को एक साथ रखा जाए तो यह उनसे दोगुनी प्राचीन है।”

अब क्या बताए गुरु ! जो शहर इतिहास से भी पुराना है, उसके बारे में हम बताना कहां से शुरु करें? शिव-शक्ति के दम-दम और बाबा के बम-बम से गूंजते इस शहर के वैसे तो – काशी, अविमुक्तका, महाश्मशान, आनन्द-कानन, सुरंधन, ब्रह्मावर्त, सुदर्शन, रम्य जैसे कई नाम हैं, लेकिन यहां के लोगों के लिए इसका एक ही नाम- ‘बनारस’. बहरहाल, इस शहर को कुछ लोग ‘वाराणसी’ भी कहना पसंद करते हैं. वाराणसी मतलब- ‘वरुणा-अस्सी का संगम’।
“चौसठ योगिनियों, बारह सूर्य, छप्पन विनायक, आठ भैरव, नौ दुर्गा, बयालीस शिवलिंग, नौ गौरी, महारुद्र और चौदह ज्योतिर्लिंगों वाला ये बनारस, देश की सांस्कृतिक राजधानी है. बनारसियों का भौकाल और मस्त-मौला व्यवहार दुनिया को अपने ठेंगे पर रखकर जीने के अंदाज को बयां करता है. तभी तो, बनारसियों ने अपने सांसद को देश का प्रधानमंत्री रखा हुआ है.”
पवित्रता का पर्याय बना ये शहर बनारस गंगा मईया की गोद में पलता है। मां गंगा की अविरल धारा के साथ बनारस की निर्मलता बहती है। गंगा नदी के किनारे बनारस को बसना था या इस नदी को बनारस के किनारे बहना था, मालूम करना आसान नहींं है, क्योंकि बनारस ही पूरी दुनिया में इकलौती ऐसी जगह है। जहां ये नदी अपने बहाव की उल्टी दिशा में यानि ‘दक्षिण से उत्तर’ की ओर बहती है। कभी घाटों की सीढ़ियों पर अठखेलियां करती हुई, तो कभी चमकीले रेत पर चढ़ती-उतराती ये पवित्र नदी सभी धर्मों में पूज्यनीय है, ‘गंगा’ सब धर्मों और कौमों की ‘मां’ है।
इसकी हर बूंद में बनारस बसता है. मां गंगा की अहमियत बताते हुए शायर नज़ीर बनारसी ने लिखा है-
“हमने तो अक्सर नमाज़े भी पढ़ी हैं, गंगा के पानी से वजू कर- करके…”
गंगा के अलावा वरुणा, गोमती और भी कई नदियां इस अर्द्धचन्द्राकार बनारस में चार चांद लगाती हैं। नदियों की कल-कल, घंटे-घड़ियालों और अज़ान की आवाज सुनकर जागते इस शहर में हर कोई गुरु है, चेला कोई नहीं. हर कोई राजा है, प्रजा कोई नहींं। ये अल्हड़ बनारस अपनी बेफिक्री और फक्कड़पन के लिए दुनियाभर में मशहूर है. इसीलिए तो कहा जाता है-
“जो मजा बनारस में, वो न पेरिस में न फारस में”
अस्सी से शुरू मर्णिकणिका घाट में अंत होता बनारस
बनारस के अलग अंदाज को देखना, समझना और जीना हो तो बनारस के घाटों पर जाइए। भांग-बूटी की मस्ती में डूबे साधु-सन्यासी और बनारसी मस्ती की अद्भुत छवि यहीं देखने को मिलती है। शिव के इस दरबार में दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, मर्णिकणिका घाट, हरिश्चन्द्र घाट सहित चौरासी से ज्यादा घाट हैं। कुछ नई कहानियां अस्सी घाट से शुरु होती है, तो वहीं कुछ का अन्त मर्णिकणिका घाट पर होता है। बड़े-बड़े सन्त-महात्मा ज्ञान पाने के लिए यहां आते है और फिर यहीं के होकर रह जाते हैं. क्योंकि घाटों में मुक्ति मिलती है और ये दुनिया को जीवन की अहमियत बताता है।
रांड, सांड, सीढ़ी, घाट, संन्यासी वाली ये काशी केवल यहीं नहीं बसती. यहां की बोली में भी बनारस बोलता है। जब कभी बनारस के जाम में फंसी चारपहिया किसी के साईकिल को छू भी ले, तो आवाज आती है-
“ का गुरु ! ढेर जल्दी बा. उड़के जईबा, हेलिकाप्टर मंगवा देई ? ”
इतनी मिठास है यहां की बोली में, पता ही नहीं चलता कि सामने वाला गुस्से में गरिया रहा है या मुहब्बत में. किसा ने खूब कहा है-
“ठगों से ठगड़ी में, संतो से सधुक्कड़ी में,
आग से पानी में, अंग्रेजों से अंग्रेजी में,
पंडितों से संस्कृत में, बौद्धों से पालि में,
पंडों से पंडई में, गुण्डों से गुण्डई में,
और निवासियों से बनारसी में बतियाता हुआ
यह बहुभाषाभाषी बनारस है”
बनारसियों के लिए हर मस्जिद मन्दिर है और हर मन्दिर मस्जिद
“ नम: पार्वती पतये हर हर महादेव ” के सम्बोधन में रमे हुए शिव के इस दरबार की कोतवाली बाबा कालभैरव करते हैं। बनारसियों के लिए हर मस्जिद मन्दिर है और हर मन्दिर मस्जिद। यहां जितने शान से बाबा विश्वनाथ मन्दिर अडिग है, उतने ही आन से ज्ञानवापी मस्जिद भी। संकट मोचन, आलमगीर, तुलसी मानस, पार्श्वनाथ जैन मन्दिर, गोदौलिया का गिरजाघर, अढ़ाई कांगरा मस्जिद, गुरुबाग का गुरुद्वारा या कोई भी धर्मस्थल हो, सबकी महिमा अपरम्पार है और बौद्ध धर्म के लिए तो बनारस का विशेष महत्व है क्योंकि यहीं पर सारनाथ में गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था…
– बाकी के बनारस और उसके रंग अगले भाग में पढें।
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